Thursday, August 20, 2015

kashmakash

समझ नहीं आ  रहा इसे क्या बोलू। अजीब से कश्मकश है येह। 
कहता था बड़ा मैं, की नहीं बिकूंगा कभी। 
 लो आज मैं बिक गया। 
गाली दी थी जिन्हें, उन्ही के लिए लिख गया। 
लगता था की सारी  चालें समझता हूँ इन मार्केटिंग वालो की, 
लो आज उन्ही से बिक गया। 

दोस्त है मेरा एक, परेशान है बड़ा,
'३जि' है उसके पास, कहता है 'इ' भी नहीं आता। 
मैंने कहाँ मियाँ, चाल है कंपनी वालो की ४ जी जो बेचना है. 
अपने ४ को बढ़ने वास्ते उन्हें तुमसे ३ जो खीचना है। 

हाँ तो कह रहा था मैं भी कुछ, की मैं किस तरह बिक गया,
आज उसी ४जि की खातिर ये ब्लॉग लिख गया। 
समझ आई है आज इंसान की फितरत ,
कोई बिकता है रोटी को, कोई आज इंटरनेट के लिए बिक गया। 

विडम्बना है येह समय की, कि मैं चंद सिक्को मैं बिक गया। 
कि मैं चंद सिक्को मैं बिक गया।
~ शायर ए डोग्गेर्लीमी 



 http://www.airtel.in/4g/



1 comment:

  1. Awesome work.Just wanted to drop a comment and say I am new to your blog and really like what I am reading.Thanks for the share

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